वादे किसी भी रिश्ते के मूलभूत स्तंभ होते हैं, वो वादे जिनकी छाव में पलता है रिश्तों का दरख़्त, अक्सर छोटे छोटे वादों से मुकरने पर मुरझाने लगते हैं हमारे रिश्ते, प्रेम,विरह,संग ,या किसी अन्य रूप में जताए गए वादों की जड़ मनुष्य की सोच में ही पल्लवित होती है, वादों की अहमियत न समझते हुए जब कोई किसी बात से नजरें फेरता है तो वो दुनिया का सबसे घिनौना कृत्य होता है। हम इस पर विचार नहीं करते जबकि किताब में ये स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाना चाहिए कि वादे तोड़ना संसार का सबसे घृणित अपराध है।